शनिवार, 23 जुलाई 2022

मैं जयस्तम्भ हु मुझे आजादी चाहिए

मैं जयस्तम्भ हु मुझे आजादी चाहिए

आजादी के अमृत महोत्सव में मैं भी आजाद होना चाहता । 

रविकांत सिंह राजपूत। मनेन्द्रगढ़। मैं जयस्तम्भ चौक हु। शहर के प्रमुख चौक चौराहों में मेरी गिनती होती है। मेरा इतिहास भी पुराना है, लेकिन मैं आजाद नहीं हूं। मुझे आजादी चाहिए। जब भी लोगो को श्रद्धांजलि अर्पित करनी पड़ती है जयंती मनानी पड़ती है तो लोग मेरे पास आकर यहां दीप जलाकर, पुष्प अर्पित कर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते है। हर 15 अगस्त और 26 जनवरी के यहां झंडा भी फहराते है। देशभक्ति की बड़ी बड़ी बातें करते है और चले जाते है। लेकिन मुझे अब तक आजाद नहीं करा पाए। पहले मैं आजाद था तब मैं यहीं से  आजादी का महोत्सव देखता था अब चारदीवारी में कैद होने के कारण मैं अतिक्रमणकारियो की चपेट में हु। आजादी के बाद अमर शहीदों की याद को चीर अक्षुण बनाये रखने के लिए देश के सभी विकासखंडों में मुझे बनाया गया। मेरे पास आकर लोग आजादी का जश्न हर साल मनाते रहे लेकिन बीते 3 दशकों से जैसे जैसे शहर बढ़ता गया मेरा कद घटता गया और पहचान गुम होती गई। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है मैं भी आजादी का अमृत महोत्सव मनाना चाहता हु मैं भी आजादी चाहता हु। जिम्मेदारों से विनती करता हु मुझे इस 15 अगस्त आजाद कराए। 


मेरी इस स्थिति का जिम्मेदार कौन ?

जय स्तंभ राष्ट्र की संपत्ति होते हैं राष्ट्र की धरोहर होते हैं लेकिन अगर उस पर अतिक्रमण कर लिया जाए और इसे आजाद कराने के लिए आम लोगों को न्यायालय की शरण लेना पड़े तो इसका जिम्मेदार आखिर कौन है। भारत गणराज्य में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। बड़े बड़े आयोजन हो रहे हैं लेकिन दुर्भाग्य है अमर शहीदों की शहादत को याद रखने के लिए बनाया गया अभी तक आजाद नहीं हो पाया है। 

मैं गांधी पार्क भी आजाद होना चाहता हु

एक और जहां जयस्तंभ अतिक्रमण का शिकार है वहीं दूसरी ओर जय स्तंभ से लगा हुआ गांधी पार्क नाम का स्थल भी अतिक्रमण से नहीं बच पाया है।गांधी पार्क बच्चों के खेलने के लिए बनाया गया है लेकिन एक तथाकथित ट्रस्ट द्वारा इसे भी अपने कब्जे में कर लिया गया है। पूरे परिसर में तालाबंदी कर दी गई है गांधी पार्क में तालाबंदी असम में अतिक्रमण ऐसे में हम आजादी का अमृत महोत्सव कैसे बना पाएंगे। 

मेरे लिए ये कहते है जिम्मेदार


जयस्तम्भ का मामला न्यायालय में है इसलिए चारदीवारी में है। शिकायत को लेकर प्रकरण दर्ज है मामला न्यायलयीन है विचाराधीन है इसलिए प्रकरण पर फैसला आने के बाद ही कुछ होगा। 

नयनतारा सिंह तोमर
एसडीएम


मैं इस पूरे मामले में एसडीएम मनेन्द्रगढ़ से जानकारी लेकर ही कुछ कह पाऊंगा। मैं एसडीएम से इस मामले में जानकारी लेता हूं।

कुलदीप शर्मा
कलेक्टर


नगरपालिका द्वारा अतिक्रमण हटाया जाता है लेकिन फिर से वहां दुकान लगा लेते है। नगरपालिका इसका सौंदर्यीकरण कराएंगे। 

प्रभा पटेल
अध्यक्ष नगरपालिका मनेन्द्रगढ़

गुरुवार, 22 सितंबर 2011

परिचय या प्रताडऩा



सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद रैगिंग रोके नहीं रुक रही है। हरियाणा के पानीपत में एक छात्र ने अपने साथ हो रही रैगिंग का विरोध किया तो सीनियर छात्र ने उस पर चाकू से हमला कर दिया। लहुलुहान हालत में छात्र को निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है जहां वह जिंदगी और मौत से जूझ रहा हैं। समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, टी.वी. तथा बच्चों से बात करने से पता चलता है किजूनियर छात्रों में रैंगिंग का कहर कि स कदर उन्हे सता रहा हैं। अब तो रैगिंग में सहभागी बनने वाले छात्रों से घृणा होने लगी हैं।
रैगिंग का मेरा कोई व्यक्तिगत अनुभव तो नहीं हैं। पर सामान्य अर्थों में रैगिंग वरिष्ठ छात्रों द्वारा अपने कनिष्ठ साथियों को अपने साथ परिचित करने का एक साधन है। पर यह अब परिचय नही प्रताडुना बन चुका हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने के बाद विशेष रूप से छात्रावासों में लम्बे समय तक परस्पर परिचय के नाम पर रैगिंग से सम्बन्धित गतिविधियाँ चलती हैं, और बाद में वरिष्ठ छात्रों द्वारा जूनियर्स को वेलकम पार्टी देने के साथ के सम्पन्न होती है।
रैगिंग हंसी , मज़ाक, स्वस्थ मनोरंजन ,वरिष्ठ छात्रों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार आदि से प्रारम्भ होकर अपने निम्नतम स्तर तकपहुँच चुकी है तथा यौन उत्पीडन सदृश घृणित कार्य,नशा कराया जाना, सिगरेट- शराब आदि का प्रयोग करने को बाध्य करना, रात भर सोने न देना, बाल, मूंछ-दाढी आदि मुंडवा देना, पैसे ऐंठना, माता -पिता तथा अपने परिजनों को गंदी गाली आदि देना, वस्त्र उतरवा कर चक्कर कटवाना ,एक पैर पर रात भर खड़ा रखना आदि। इतनी गतिविधियाँ तो मेरे संज्ञान में हैं, संभवत: और भी ऐसे कुकृत्य रहते होंगें जिसके कारण नवप्रवेशी छात्रों की रूह काँप जाती है छात्र अपने बहुमूल्य जीवन का अंत कर लेते हैं, मनोरोगों का शिकार हो जाते हैं, नशा करने लगते हैं, प्रतियोगिताओं के माध्यम से मेरिट लिस्ट में स्थान प्राप्त करने वाले छात्र पिछड़ जाते हैं पढाई में इसके अतिरिक्त ये समस्त कार्यक्रम इतने लम्बे समय तक चलता है कि छात्रों में तनाव का वातावरण रहता है। हम शुरू से अपने परिवार व समाज द्वारा प्रदत्त संस्कार का निर्वाह करते आ रहे हैं, परन्तु आज रैगिंग की वजह से यह संस्कार उपहास का विषय बनते जा रहे हैं। पता नही रैगिंग में सहभागिता दर्ज कराने वाले छात्रों को ऐसे कुकृत्य कर कौन सी उपधि प्राप्त होती है? कि वो पढ़ाई से ज्यादा रैगिंग में सहभागी बनने को महत्व देते हैं। और शायद ये छात्र सम्मान के इतने भूखे होते है कि ये अपने कनिष्ठ छात्रों को हर जगह सम्मान करने के लिए मजबूर करते हैं। आज जरूरत उत्पन्न हो गई है कि रैगिंग स्वस्थ रूप में परिचय प्रगाढ़ करने का साधन बने न कि प्रताडऩा का ।

मंगलवार, 20 सितंबर 2011

उपवास और उम्मीदें


भारतीय राजनीति में इन दिनों उपवास अनशन का दौर है। हर कोई अनशन के सहारे अपने व्यक्तित्व को चमकाना चाहता है बहरहाल अनशन, उपवास को अनुचित नहीं ठहराया जा सकता है। स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी उपवास को आत्म शुद्धि व चरित्रिक शुद्धता व दृढ़ता का बेहतर माध्यम मानते थे दुनिया के हर धर्म में उपवास को प्राथमिकता दी गई है। इस्लाम धर्म में उपवास रोजा के पीछे मूल भावना दूसरों के भूख, दर्द, वेदना को आत्मसात करना है। हम दूसरों की पीड़ा को तभी समझते हैंं जब हम उसे स्वयं अंगीकार करें। फिलहाल हम यहां बात करेंगे गुजरात में विकास का परचम लहराने वाले मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को उपवास को उपवास के पीछे निहितार्थ भावना की अहमियत है। सद्भावना को लक्ष्य केन्द्रित किए नरेन्द्र भाई मोदी का उपवास यदि सामाजिक ताने-बाने को मजबूत कर इंसिनियत की भावना को प्रगाढ़ करता है। तो इसके लिए गुजरात के विकास पुरुष नरेन्द्र मोदी वाकई बधाई के पात्र है। जिस तरह गुजरात ने बीते दो दशकों में विकास के नये आयाम तय किए उससे राष्ट्रीय जनमानस में नरेन्द्र दामोहर भाई मोदी की स्वीकार्यता बढ़ी है। भाजपा की निगाहें इस समय मिशन 2014 पर है उसके लिए उसे नरेन्द्र दमोदर भाई मोदी से काफी उम्मीदें हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वर्तमान में नरेन्द्र मोदी बीजेपी के सबसे बड़े धाकड़ नेता है। अपने इस सद्भावना मिशन से उन्होंने अपने विराट छवि को दृढ़ किया है। क्या मोदी भारत के अगले प्रधानमंत्री होंगे? यह लाख टके का सवाल है लेकिन इस सवाल ने मोदी विरोधी नेताओं में बेचैनी बढ़ा दी हैं। नरेन्द्र मोदी की राजनीति का एक जुदा अंदाज है। बतौर मोदी वे अपने ऊपर फेंके गए आलोचना रूपी पत्थर को एकत्रित कर उससे विकास की सीढ़ी तैयार करते है। फिलहाल आने वाला समय राजनीतिक दृृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं जो मोदी की स्वीकार्यता या अस्वीकार्यता पर छायी धुंध को हटाएगा एवं भारतीय राजनीति की दिशा निर्धारित करेगा।

बुधवार, 14 सितंबर 2011

राष्ट्रीय खेल का ये कैसा सम्मान ?





राष्ट्रीय खेल का ये कैसा सम्मान ?

भारतीय हॉकी पिछले कई वर्षो से विवादो की वजह से चर्चा में रही है। खिलाडिय़ों से ज्यादा हॉकी में अधिकारियों व फेडरेशन के विवाद पीछा छोडऩे का नाम नही ले रहे है। ऐसे में एशियन चैंपियन्स ट्राफी में भारत की जीत एक सुखद आश्चर्य की तरह आई है। इस जीत से पता चलता है कि भारत में प्रतिभा कि कमी नहीं है, बस जरूरत है हॉकी प्रशासन को पटरी पर लाने कि। एशियन चैंपियंस ट्राफी में भारत का परचम लहराने वाली इस युवा टीम ने पूरे टूर्नामेंट में एक भी मैच नहीं हारी। वही फाइनल में भारत ने परंपरागत प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को 4-2 से हराकर खिताब अपने नाम किया। पाकिस्तान से जीत भारतीय हॉकी प्रेमियों के लिए आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी वह 50 साल पहले थी। भारतीयों को इस जीत की खुशी देने वाले भारतीय हॉकी टीम को प्रोत्साहन राशि के रुप में 25 हजार रुपये प्रत्येक खिलाड़ी को दिए जाने की बात ·ही गई जिसे खिलाडिय़ों ने लेने से इंकार कर दिया है। इंकार करे भी क्यों न, अगर क्रिकेट होता तो क्या प्रोत्साहन राशि इसी प्रकार होती? क्या राष्ट्रीय खेल होने का यही मतलब होता है? क्या राज्यों की ओर से चुप्पी छाई रहेगी? क्या हमारे प्रतिभावान हॉकी खिलाडिय़ों के साथ ऐसा ही मजाक आए दिन होता रहेगा? जिस देश में ही इस खेल का जन्म हुआ हो उसी देश में ही उस खेल की ऐसी बदहाल हालत को  देखकर अब तरस आती हैं। हर रोज हॉकी की बेहतरी के  लिए खबरे छपती रहती है, नयी-नयी घोषणाएं होती है पर ऐसी हालत को देखकर यही लगता है कि ये घोषणाए महज फाइलों तक ही सीमित रहती है। विजेता टीम के साथ ये इनामी राशि मजाक जैसा है। विजेता टीम खुद खेल मंत्री के इन खोखले दावे से निराश है जिसमें खेल मंत्री ने राष्ट्रीय खेल को फिर से नई बुलंदियों तक  पहुंचाने कि बात कि है।
विजेता टीम के ·कप्तान खुद कहते है कि खेल मंत्री हमारी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं और यह मानते है कि यह इनामी राशि मौजूदा खिलाडियों के मनोबल को बढ़ाने के लिहाज से कम है। हॉकी खिलाडिय़ों को दी गई इनामी राशि न केवल मौजूदा खिलाडिय़ों को प्रेरित करने लायक होनी चाहिए बल्कि भावी पीढ़ी को इस खेल कि ओर आकर्षित करने के लिहाज से भी उपयुक्त होनी चाहिए। एक  तरफ 1983 के बाद विश्वकप का सूखा खत्म करने वाली भारतीय क्रिकेट टीम पर धनों और सम्मानों कि बारिश शुरू हो गई थी। बीसीसीआई ने तो मैच खत्म होने के बाद ही नगद इनामों की घोषणा कर दी थी व विभिन्न राज्यों सहित रेल मंत्रालय ने भी टीम इंडिया के  खिलाडिय़ों पर धनवर्षा करने में कोई ·कसर नही छोड़ी थी पर हमारे राष्ट्रीय खेल के खिलाडिय़ों के साथ ऐसा पझपात पूर्ण रवैया समझ से परे हैं। हॉकी के साथ बरसों से ऐसा सौतेला व्यवहार होता रहा है। फिर भी इस दिशा में कोई ठोस पहल होते नही दिख रहा हैं। सरकार को अब हॉकी खिलाडिय़ो के सुविधाओं में वृद्धि करनी होगी व हॉकी की  बेहतरी के लिए कार्य करना होगा। तब ही हमारे राष्ट्रीय खेल की बुनियाद मजबूत होगी। व हम इस खेल में एक बार फिर सिरमौर होंगे।