ध्यानचंद को भारत रत्न सच्ची श्रद्धांजलि

जैसे ही भारत रत्न सम्मान देने के नियमों में संशोधन की बात हो रही है
और यह सुनने में आ रहा है की यह सम्मान पाने वालों की फहेरिस्त में अब
खिलाडिय़ों को शमिल किया जा रहा है तबसे मेरे मन में बार-बार एक ही सवाल उठ
रहे है की खिलाडिय़ों की श्रेणी में यह सर्वोच्च सम्मान पाने का पहला हकदार
कौन होगा? कभी क्रिकेट के बेताज बादशाह सचिन तेंदूलकर का नाम आता है तो कभी हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का नाम आता हैं। मैं सचिन का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं |
जिसने न सिर्फ लाखों भारतीयों को बल्कि दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों
को अपने प्रदर्शन व नित नए कीर्तिमान स्थापित कर अपना मुरीद बनाया। अभी तक
उनके व्यवहार पर किसी तरह का कोई छोटा सा भी आरोप-प्रत्यारोप नहीं लगा है
। बेशक जिस तरीके से सचिन ने खेल के लिए पैशन को बनाए रखा है, उसके लिए
आज का युवा उन पर गर्व करता हैं। क्रिकेट के बादशाह से जुड़ी इन तमाम
महान चीजों के बावजूद, समझ नही पा रहा हूं की खेल के क्षेत्र में भारत रत्न
सम्मान पाने वाले वह पहले खिलाड़ी होने चाहिए या नही?
बीते कुछ दिनों
से एक और नाम सामने आ रहा है। अगर आप खेलप्रेमी होने का दावा करता है तो आप
को ध्यान चंद के बारे में पता होना ही चाहिए। जिसने 1928 एम्सटर्डम,
1932 लॉस ऐंजिलिस और 1936 बर्लिन ओलिंपिक में देश के लिए हॉकी में लगातार
तीन ओलिंपिक स्वर्ण पदक जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दुनिया
भर के लोगों के पास इस 70 मिनट के खेल में ध्यान चंद की जादुई खेल के
बहुत से ·किस्से -·कहानियां सुनते आ हैं। 1936 में जब भारत ने बर्लिन
ओलिंपिक में अपना पहला खेल खेला, तो यह शब्द उन दिनों चारों ओर सुनाई दिया
की एक जादूगर हॉकी मैदान पर उतर आया है। इतना ही नहीं इस जादूगर ने
दूसरी टीम के दर्शको का ध्यान भी अपनी ओर खींचा। वही एक बार एक महिला
दर्शक ने ·हाकी का अगर वह वाकई जादुगर हैं, तो क्या वह उसकी छड़ी के
साथ खेल सकते हैं ? ध्यान चंद ने उनकी छड़ी के साथ खेला और गोल भी किये |
और हां सबसे दिलचस्प किस्सा तो वह है जब बर्लिन ओलिंपिक में हिटलर ने उनके
अद्भुत प्रदर्शन को देखने के बाद उन्हें जर्मन नागरिकता और जर्मन सेना
में प्रमोशन की पेशकश तक कर डाली। यह अलग बात है कि ध्यान चंद ने इस
पेशकश को ठुकरा दिया। जब ध्यान चंद खेला करते थे तो वह हॉकी का स्वर्णिम
युग था और उस समय हॉकी कि दुनिया में कई महान खिलाड़ी थे। लेकिन ध्यानचंद
अपने जमाने के अन्य खिलाडिय़ों से मीलो आगे थे और उनकी किसी से तुलना भी
नहीं कि जा सकती थी। हालांकि सचिन तेंदूल·र भी महान खिलाड़ी हैं, पर
क्रिकेट में कुछ ऐसे खिलाड़ी हुए हैं जो उनसे बेहतर भले न हों, पर उनकी
·कटिगरी ·के जरूर कहे जा सकते हैं। ध्यानचंद के मामले में कोई भी ऐसा
नहीं है जो उनके करीब भी आता हो। लेकिन फिर भी कोई भी हॉकी पर ध्यानचंद
जितनी करिश्माई पकड़ नहीं रखता था।
ध्यानचंद आज इस इस दुनिया मे
नही हैं। सरकार ने उनके जन्मदिवस को खेल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय
लिया है, उनके नाम से स्टेडियम बनाया गया। पर उनको मरणोपरांत उन्हे
खिलाडिय़ों की श्रेणी में पहला भारत रत्न मिलता हे तो यह उनको सच्ची
श्रद्धांजलि होगी।
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